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हाफिज़ अरशद बशीर मदनी - ऑडियो

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    होतीं : इस्लाम एक सार्वभौमिक और शाश्वत धर्म है : इस्लाम अल्लाह का अंतिम धर्म है, जो अंतिम सन्देष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस धर्म को लाने के समय से लेकर परलोक के दिन तक, सभी लोगों के लिए एक सर्वसामान्य धर्म है। अतः मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बाद कोई ईश्दूत और सन्देष्टा नहीं, तथा इस्लाम के बाद कोई अन्य धर्म और सन्देश नहीं। सो इसलाम किसी विशेष जनजाति या गोत्र के लिए नहीं है, और न ही किसी एक विशेष स्थान या निर्धारित समय के लिए है। बल्कि हर समय और पर स्थान पर सभी लोगों के लिए एक सर्वसामान्य है। धर्म के रूप में इस्लाम नहीं है. इस व्याख्यान में इसी का वर्णन किया

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    का इस्लामी तरीक़ा : इसमें कोई संदेह नहीं कि मतभेद का पैदा होना स्वभाविक है, और जीवन में ऐसा होता रहता है। वर्तमान समय में तो, धर्म से अनभिज्ञता या उससे दूरी के कारण, इसका ग्राफ़ बढ़ गया है। प्रस्तुत व्याख्यान में मतभेद को हल करने और विवाद को सुलझाने के इस्लामिक तरीक़ा पर प्रकाश डाला गया है, और वह तरीक़ा यह है कि हर छोटे-बड़े मतभेद में क़ुरआन और सुन्नत की ओर पलटा जाए, और उसे सुलझाने में पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के निर्देश़, मार्गदर्शन और आपके सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम के तरीक़े का अनुसरण किया जाए।

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    होतीं : अल्लाह ने अपने बन्दों दुआ करने का आदेश दिया है और उनसे वादा किया है कि उनकी दुआयें क़बूल करेगा। लेकिन हम में से बहुत सारे लोग शिकायत करते हैं कि हमने बहुत दुआ की, पर हमारी दुआ क़बूल नहीं हुई! सो प्रस्तुत व्याख्यान में कुछ उन कारणों का उल्लेख किया गया है जो दुआ की स्वीकृति में रुकावट बनती हैं, जैसे- हराम खान-पान, भलाई का आदेश देने व बुराई से रोकने के कर्तव्य का त्याग, दुआ के क़बूल होने में विश्वास की कमी, सुदृढ़ता के साथ दुआ न करना, पाप करना, इसी तरह इसका कारण यह भी हो सकता है अल्लाह के तत्वदर्शिता में यह हो कि दुआ करनेवाले आदमी की विशिष्ट मांग को पूरी न करने में ही भलाई हो।