अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह - ऑडियो
आइटम्स की संख्या: 34
- हिन्दी वक्ता : फैज़ुल्लाह अल-मदनी संशोधन : अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह
हिज्जा के दस दिनों की प्रतिष्ठा: इस उम्मत पर अल्लाह का बहुत बड़ा उपकार और एहसान है कि उसने उन्हें नेकी के ऐसे अवसर प्रदान किए हैं, जिनमें वे नेक कार्य कर अल्लाह की अधिक निकटता और कई गुना पुण्य और इनाम प्राप्त कर सकते हैं। उन्हीं अवसरों में एक महान अवसर ज़ुल-हिज्जा के महीने के प्राथमिक दस दिन हैं। ये साल के सबसे श्रेष्ठ दिन हैं, औ इनके अन्दर नेक कार्य करना अल्लाह को अन्य दिनों के मुक़ाबले मे अधिक प्रिय और पसंदीद है। इसिलए इन दिनों में अधिक से अधिक अल्लाहु अक्बर, ला इलाहा इल्लल्लाह और अल्हम्दुलिल्लाह कहना चाहिए, तथा अन्य उपासना कृत्य करना चाहिए। इन्ही दिनों में एक महान इबादत हज्ज भी अदा किया जाता है। प्रस्तुत व्याख्यान में इन्ही बातों का उल्लेख करते हुए, अल्लाह के पवित्र घर और वहाँ की स्पष्ट निशानियों- मक़ामे इब्राहीम, हज्रे-अस्वद, ज़मज़म के कुआं के उल्लेख
- हिन्दी वक्ता : फैज़ुल्लाह अल-मदनी संशोधन : अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह
नेकियों पर स्थिरताः अल्लाह तआला ने बन्दों को मात्र अपनी उपासना के लिया पैदा किया है और उन्हें अपनी आज्ञाकारिता का आदेश दिया है, और मृत्यु से पहले इसकी कोई सीमा निर्धारित नहीं किया है, बल्कि उन्हें मृत्यु के आने तक नेक कार्यों पर जमे रहने का आदेश दिया है। हमारे सन्देष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम तथा पुनीत पूर्वजों का यही तरीक़ा था कि वे इस पहलू पर काफी ध्यान देते थे। प्रस्तुत व्याख्यान में निरंतर नेक कार्य करने और पूजा कृत्यों पर जमे रहने पर बल दिया गया है, यहाँ तक कि आदमी की मृत्यु आ जाए, और इस दुनिया में उसका अन्त अच्छे कार्यों पर हो ताकि परलोक के दिन इसी हालत में उसे उठाया जाए। इसी तरह उन नाम-निहाद औलिया का खण्डन किया गया है जो झूठमूठ यह दावा करते हैं कि वे इस स्तर पर पहुँच गए हाँ जहाँ उनके लिए शरीअत की प्रतिबद्धता समाप्त हो जाती है!!!
- हिन्दी वक्ता : फैज़ुल्लाह अल-मदनी संशोधन : अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह
रमज़ान के अंतिम दस दिनों की फज़ीलतः इस उम्मत पर अल्लाह का बहुत बड़ा उपकार है कि उसने उन्हें रमज़ान के अंतिम दस दिनों में एक ऐसी रात प्रदान किया है, जो हज़ार महीनों (अर्थात 83 वर्षों) से अधिक बेहतर है। इसीलिए इस रात को पाने के लिए पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एतिकाफ़ करते थे और नेकी के कार्यों में बहुत संघर्ष करते थे, रातों को जागते थे और अपने परिवार को भप जगाते थे। प्रस्तुत व्याख्यान में इसी पर चर्चा किया गया है।
- हिन्दी वक्ता : फैज़ुल्लाह अल-मदनी संशोधन : अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह
रोज़े की रक्षाः रोज़ा मात्र खाना पानी छोड़ देने, या कुछ रोज़ा तोड़ने वाली चीज़ों से रुक जाने का नाम नहीं है। बल्कि वास्तविक रोज़ा गुनाहों से रुक जाने, उनसे दूर रहने का नाम है। प्रस्तुत व्याख्यान में, इस पवित्र महीने में गुनाहों में पड़ने से चेतावनी देते हुए, झूठ, हराम (निषिद्ध) चीज़ों को देखने, सुनने, बोलने और करने से रोज़े को सुरक्षित रखने पर ज़ोर दिया गया है। विशेषकर पाँच समय की दैनिक नमाज़ों मे कोताही व लापरवाही करने से सावधान किया गया है, जिसके बारे में शरीअत में कड़ी चेतावनी आई है। इसी तरह, रोज़े के अलावा रमज़ान के महीने में अन्य एच्छिक कार्यों जैसे- तरावीह की नमाज़, क़ियामुल्लैल और अधिक से अधिक क़ुरआन करीम का पाठ करने का उल्लेख किया गया है।
- हिन्दी वक्ता : फैज़ुल्लाह अल-मदनी संशोधन : अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह
रोज़ा तोड़नेवाली चीज़ें : इस व्याख्यान में रोज़े की अनिवार्यता का चर्चा करते हुए, उसकी अनिवार्यता को नकारने वाले अथवा बिना किसी वैध कारण के रोज़ा न रखने वाले का हुक्म उल्लेख किया गया है। तथा जिन लोगों के लिए रमज़ान के महीने में रोज़ा न रखने की छूट दी गई है, उनके कारणों का उल्लेख करते हुए, उन चीज़ों का खुलासा किया गया है जिनसे रोज़ा टूट जाता है। इसी तरह सेहरी करने और उसे अंतिम समय तक विलंब करने के बेहतर होने का चर्चा करते हुए, रमज़ान के दिन में संभोग करने के कफ्फारा (परायश्चित) पर सविस्तार प्रकाश डाला गया है।
- हिन्दी वक्ता : मक़्सूदुल हसन फैज़ी संशोधन : अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह
रमज़ान के स्वर्ण अवसर को गनीमत समझोः अल्लाह का अपने बन्दों पर बहुत बड़ उपकार है कि उसने उन्हें प्रतिष्ठित वक़्तों और उपासना के महान अवसरों से सम्मानित किया है ; ताकि वे अधिक से अधिक सत्कर्म कर कर सकें और दुष्कर्मों से पश्चाताप कर सकें। उन्हीं में से एक महान अवसर रमज़ानुल मुबारक का महीना है। यह एक ऐसा महान और सर्वश्रेष्ठ महीना है जिसे पाने के लिए हमारे पुनीत पूर्वज छः महीना पहले से ही दुआ किया करते थे और उसका अभिवादन करने के लिए तत्पर रहते थे। जब यह महीना आ जाता तो वे अल्लाह की आज्ञाकिरता के कामों में जुट जाते और कठिन परिश्रम करते थे। लेकिन आज के मुसलमान इस महीने के महत्व से अनभिज्ञ हैं या लापरवाही से काम लेते हैं और इस महीने को अन्य महीनों के समान गुज़ार देते हैं, उनके जीवन में कोई बदलाव नहीं आता है। इसीलिए अल्लाह ने ऐसे व्यक्ति को अभागा घोषित किया है! प्रस्तुत व्याख्यान में रमज़ान के महीने की फज़ीलत-प्रतिष्ठा पर चर्चा करते हुए, इस महीने की महान घड़ियों और क्षणों से भरपूर लाभ उठाने पर बल दिया गया है, तथा रमज़ान के रोज़ों के बारे में कोताही करने पर कड़ी चेतावनी दी गई है और उसके दुष्परिणाम से अवज्ञत कराया गया है।
- हिन्दी वक्ता : फैज़ुल्लाह अल-मदनी संशोधन : अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह
रोज़े की अनिवार्यता और उसके प्रावधानः प्रस्तुत आडियो में रमज़ान के महीने के रोज़े की अनिवार्यता, क़ुरआन व हदीस से उसकी अनिवार्यता के प्रमाणों, उसकी अनिवार्यता की शर्तों और रोज़े की तत्वदर्शिता का उल्लेख किया गया है। इसी तरह रोज़े के कुछ प्रावधानों, जैसे- रोज़े की नीयत, उसका अर्थ और नीयत का स्थान, तथा सेहरी करने की फज़ीलत व महत्व का उल्लेख किया गया है।
- हिन्दी वक्ता : फैज़ुल्लाह अल-मदनी संशोधन : अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह
रमज़ान का मुबारक महीना, नेकी वभलाई के महान और सर्वश्रेष्ठ अवसरों में से है। प्रस्तुत आडियो में रमज़ान के महीने की फज़ीलत-प्रतिष्ठा पर चर्चा करते हुए, रमज़ान के महीने की शुरूआत और उसके प्रवेष करने के सबूत का वर्णन किया गया है, और यह स्पष्ट किया गया कि रमज़ान के महीने के आरंभ होने की प्रामाणिकता रमज़ान का चाँद देखने या उसके देखे जाने पर एक विश्वस्त आदमी की गवाही का होना, और यदि किसी कारण चाँद न दिखाई दे तो शाबान के तीस दिन पूरे करना है। तथा रमज़ान से पहले उसके अभिवादन के तौर पर एक दो दिन रोज़ा रखना धर्मसंगत नही है।
- हिन्दी वक्ता : अबू ज़ैद ज़मीर संशोधन : अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह
शबें शबे-बराअत की हक़ीक़तः कोई महीना ऐसा नहीं बीतता जिसमें बिदअती और अपनी इच्छाओं के पुजारी लोग धर्म के नाम पर कोई न कोई नवाचार निकालकर अंजाम न देते हों। उन्हीं में से शाबान महीने की पंद्रहवीं रात को विशेष उपासना करना, उसके दिन का रोज़ रखना, हलवा बनाना, और अन्य अवैद्ध कार्य करना व मान्चता रखना इत्यादि शामिल हैं। प्रस्तुत व्याख्यान में, क़ुरआन व हदीस के प्रकाश में इस विषय में वर्णित प्रमाणों का उल्लेख कर उनकी वास्तविकता को स्पष्ट किया गया है, तथा उसके बारे में उठाए जाने वाले संदेहों का उत्तर दिया गया है, और यह बताया गया है कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके सहाबा रज़ियल्लाह अन्हुम से इस बाबत कोई चीज़ प्रमाणित नहीं है।
- हिन्दी वक्ता : हाफिज़ अरशद बशीर मदनी संशोधन : अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह
का इस्लामी तरीक़ा : इसमें कोई संदेह नहीं कि मतभेद का पैदा होना स्वभाविक है, और जीवन में ऐसा होता रहता है। वर्तमान समय में तो, धर्म से अनभिज्ञता या उससे दूरी के कारण, इसका ग्राफ़ बढ़ गया है। प्रस्तुत व्याख्यान में मतभेद को हल करने और विवाद को सुलझाने के इस्लामिक तरीक़ा पर प्रकाश डाला गया है, और वह तरीक़ा यह है कि हर छोटे-बड़े मतभेद में क़ुरआन और सुन्नत की ओर पलटा जाए, और उसे सुलझाने में पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के निर्देश़, मार्गदर्शन और आपके सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम के तरीक़े का अनुसरण किया जाए।
- हिन्दी वक्ता : हाफिज़ अरशद बशीर मदनी संशोधन : अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह
होतीं : अल्लाह ने अपने बन्दों दुआ करने का आदेश दिया है और उनसे वादा किया है कि उनकी दुआयें क़बूल करेगा। लेकिन हम में से बहुत सारे लोग शिकायत करते हैं कि हमने बहुत दुआ की, पर हमारी दुआ क़बूल नहीं हुई! सो प्रस्तुत व्याख्यान में कुछ उन कारणों का उल्लेख किया गया है जो दुआ की स्वीकृति में रुकावट बनती हैं, जैसे- हराम खान-पान, भलाई का आदेश देने व बुराई से रोकने के कर्तव्य का त्याग, दुआ के क़बूल होने में विश्वास की कमी, सुदृढ़ता के साथ दुआ न करना, पाप करना, इसी तरह इसका कारण यह भी हो सकता है अल्लाह के तत्वदर्शिता में यह हो कि दुआ करनेवाले आदमी की विशिष्ट मांग को पूरी न करने में ही भलाई हो।
- हिन्दी वक्ता : फैज़ुल्लाह अल-मदनी संशोधन : अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह
अल्लाह सर्वशक्तिमान ने हमें सूचना दी है कि दुनिया का यह जीवन नश्वर है, स्थायी नहीं है और इसके बाद परलोक का जीवन ही स्थायी और सदा रहनेवाला घर है। इसी तरह यह जीवन कार्य और परीक्षण का घर है, जिसमें मनुष्य कार्य करता है, खेती करता है ताकि इसके बाद के जीवन में उसका प्रतिफल प्राप्त करे। इसीलिए अल्लाह ने मनुष्य को चेतावनी दी है कि उसे दुनिया और उसके श्रंगार से धोखा नहीं खाना चाहिए। क्योंकि यह दुनिया परलोक के सामने कुछ भी महत्व नहीं रखती है। तथा अल्लाह सर्वशक्तिमान दुनिया उसे भी देता है जिससे प्यार करता है और जिससे प्यार नहीं करता। अतः मनुष्य को चाहिए कि वह आखिरत की अनदेखी कर दुनिया में लिप्त न हो जाए। बल्कि उसका मूल उद्देश्य परलोक का जीवन और उसकी अनश्वर समृद्धि होनी चाहिए। प्रस्सतुत व्याख्यान में इसी का वर्णन किया गया है।
- हिन्दी वक्ता : फैज़ुल्लाह अल-मदनी संशोधन : अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह
वेलेंटासबसे बड़ा व सबसे महत्वपूर्ण काम अल्लाह सर्वशक्तिमाम का एकेश्वरवाद (तौहीद), और उसके साथ किसी को साझी न ठहराना है। यही इस्लाम धर्म की नींव और मौलिक सिद्धांत है। तथा यही सर्वप्रथम संदेष्टा नूह अलैहिस्सलाम से लेकर अंतिम संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तक सभी संदेष्टाओं का धर्म रहा है। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस एकेश्वरवाद को स्थापित करने के लिए भरपूर संघर्ष किया और इसके महत्व को स्पष्ट किया। जबकि दूसरी तरफ, इसके विपरीत अनेकेश्वरवाद व बहुदेववाद से सावधान किया, उसके सभी रूपों और भेदों पर चेतावनी दी और उसकी कुरूपता व दुष्टता को स्पष्ट किया।
- हिन्दी वक्ता : सफीउर्रहमान मुबारकपूरी संशोधन : अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह
धरती पर जितने भी प्राणी हैं सब की रोज़ी का जिम्मेदार सर्वशक्तिमान अल्लाह है, और उस ने प्रत्येक व्यक्ति की एक नियमित जीविका लिख रखी है जिसे प्राप्त किए बिना वह नहीं मरेगा। तथा अल्लाह तआला ने रोज़ी कमाने के असबाब (कारण, उपाय) भी मुक़द्दर कर दिये हैं जिन को रोज़ी की प्राप्ति के लिए अपनान आवश्यक है। किन्तु मनुष्य चूँकि जल्दवाज़ पैदा किया गया है और उसके अंदर कंजूसी और धन का प्यार रख दिया गया है, इसलिए वह अपने ऊपर नियंत्रण नहीं रख पाता और रोज़ी कमाने के लिए सब से से आसान और संछिप्त उपाय और तरीक़ा तलाश करता है और हलाल और हराम की कोई परवाह नहीं करता है। इस तरह आदमी हराम कमाई और हराम खोरी में लग जाता है। हराम कमाई क्या है? आदमी की कमाई किन-किन कारणों से हराम हो जाती है? हराम कमाई का नुकसान और कुप्रभाव क्या है? ये सब और इन से संबंधित अन्य मुद्दे आप सुन सकते हैं इस आडिय में ।