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अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह - सभी आइटम

आइटम्स की संख्या: 422

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    हर वर्ष नये हिज्री साल के आगमन पर हम अल्लाह के दिनों में से एक ऐसे दिन का अभिनंदन करते हैं, जिसके बारे में लोगों ने मतभेद किया है, और वह मुहर्रम के महीने का दसवाँ दिन है। इसके अंदर दो ऐसी प्रभवाशाली घटनाएँ घटीं हैं जिनके कारण लोगों ने इस दिन के कार्यों के बारे में मतभेद किया है: पहली घटना: मूसा अलैहिस्सलाम और उनकी क़ौम की मुक्ति, तथा फिरऔन और उसकी सेना का विनाश। दूसरी घटना: नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के नवासे हुसैन बिन अली बिन अबी तालिब की हत्या। हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु और उनसे पहले उसमान रज़ियल्लाहु अन्हु की हत्या इस उम्मत में फित्नों के सबसे बड़े कारणों में से है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मूसा अलैहिस्सलाम के नजात और फिरऔन के विनाश पर अल्लाह के प्रति आभार प्रकट करने के तौर पर, इस दिन रोज़ा रखने का निर्देश दिया है। उसके रोज़े का हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु की हत्या से कोई संबंध नहीं है। प्रस्तुत लेख में आशूरा के दिन के बारे में पथभ्रष्ट होने वाले दलों और संप्रदायों, हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के बारे में सही स्थिति का उल्लेख करते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि अहले सुन्नत इस बारे में अल्लाह की शरीअत का पालन करते हैं, इसलिए वे लोग इस दि मातम नहीं करते हैं।

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    मुहर्रमुल-हराम का महीना हुर्मत व अदब और प्रतिष्ठा वाला महीना है। इसी महीने की दसवीं तारीख को (आशूरा के दिन) अल्लाह तआला ने पैगंबर मूसा अलैहिस्सलाम को फिरऔन से मुक्ति प्रदान की। जिस में रोज़ा रखना मुस्तहब है, जो कि पिछले एक वर्ष के गुनाहों का कफ्फारा हो जाता है। किन्तु अधिकांश मुसलमान इस से अनभिग हैं और इस महीने की हुर्मत को भंग करते हुए इसे शोक प्रकट करने, नौहा व मातम करने और सीना पीटने...आदि का महीना बना लिया है। इस महीने का एक पहलू यह भी है कि इसी से इस्लामी वर्ष का आरंभ होता है। परंतु यह भी एक तथ्य है कि इसके प्रवेष करते ही हर साल यज़ीद, कर्बला की घटना और उसमें घटित होना वाली हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु की शहादत के बारे में चर्चा शुरू हो जाती है। जिसमें सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम तक को निशाना बनाने, बुरा-भला कहने, धिक्कार करने में संकोच नहीं किया जाता है। राफिज़ा-शिया की तो बात ही नहीं करनी ; क्योंकि उनका तो यही धर्म है, मगर खेद की बात यह है कि बहुत से अहले सुन्नत वल जमाअत से निस्बत रखनेवाले लोग भी राफिज़ा-शिया का राग अलापते हैं और बिना, सत्यापन, जाँच-पड़ताल और छान-बीन के उन्हीं की डगर पर चलते नज़र आते हैं। प्रस्तुत व्याख्यान में यज़ीद के बार में अहले सुन्न वल जमाअत के पूर्वजों और वरिष्ठ विद्वानों के कथनों और उनके विचारों का सविस्तार उल्लेख किया गया है।

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    मुहर्रमुल-हराम का महीना हुर्मत व अदब और प्रतिष्ठा वाला महीना है। इसी महीने की दसवीं तारीख को (आशूरा के दिन) अल्लाह तआला ने पैगंबर मूसा अलैहिस्सलाम को फिरऔन से मुक्ति प्रदान की। जिस में रोज़ा रखना मुस्तहब है, जो कि पिछले एक वर्ष के गुनाहों का कफ्फारा हो जाता है। किन्तु अधिकांश मुसलमान इस से अनभिग हैं और इस महीने की हुर्मत को भंग करते हुए इसे शोक प्रकट करने, नौहा व मातम करने और सीना पीटने...आदि का महीना बना लिया है। इस महीने का एक पहलू यह भी है कि इसी से इस्लामी वर्ष का आरंभ होता है। परंतु यह भी एक तथ्य है कि इसके प्रवेष करते ही हर साल यज़ीद, कर्बला की घटना और उसमें घटित होना वाली हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु की शहादत के बारे में चर्चा शुरू हो जाती है। जिसमें सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम तक को निशाना बनाने, बुरा-भला कहने, धिक्कार करने में संकोच नहीं किया जाता है। राफिज़ा-शिया की तो बात ही नहीं करनी ; क्योंकि उनका तो यही धर्म है, मगर खेद की बात यह है कि बहुत से अहले सुन्नत वल जमाअत से निस्बत रखनेवाले लोग भी राफिज़ा-शिया का राग अलापते हैं और बिना, सत्यापन, जाँच-पड़ताल और छान-बीन के उन्हीं की डगर पर चलते नज़र आते हैं। प्रस्तुत व्याख्यान में यज़ीद के बार में अहले सुन्न वल जमाअत के पूर्वजों और वरिष्ठ विद्वानों के कथनों और उनके विचारों का सविस्तार उल्लेख किया गया है।

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    मुहर्रमुल-हराम का महीना हुर्मत व अदब और प्रतिष्ठा वाला महीना है। इसी महीने की दसवीं तारीख को (आशूरा के दिन) अल्लाह तआला ने पैगंबर मूसा अलैहिस्सलाम को फिरऔन से मुक्ति प्रदान की। जिस में रोज़ा रखना मुस्तहब है, जो कि पिछले एक वर्ष के गुनाहों का कफ्फारा हो जाता है। किन्तु अधिकांश मुसलमान इस से अनभिग हैं और इस महीने की हुर्मत को भंग करते हुए इसे शोक प्रकट करने, नौहा व मातम करने और सीना पीटने...आदि का महीना बना लिया है। इस महीने का एक पहलू यह भी है कि इसी से इस्लामी वर्ष का आरंभ होता है। परंतु यह भी एक तथ्य है कि इसके प्रवेष करते ही हर साल यज़ीद, कर्बला की घटना और उसमें घटित होना वाली हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु की शहादत के बारे में चर्चा शुरू हो जाती है। जिसमें सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम तक को निशाना बनाने, बुरा-भला कहने, धिक्कार करने में संकोच नहीं किया जाता है। राफिज़ा-शिया की तो बात ही नहीं करनी ; क्योंकि उनका तो यही धर्म है, मगर खेद की बात यह है कि बहुत से अहले सुन्नत वल जमाअत से निस्बत रखनेवाले लोग भी राफिज़ा-शिया का राग अलापते हैं और बिना, सत्यापन, जाँच-पड़ताल और छान-बीन के उन्हीं की डगर पर चलते नज़र आते हैं। प्रस्तुत व्याख्यान में यज़ीद के बार में अहले सुन्न वल जमाअत के पूर्वजों और वरिष्ठ विद्वानों के कथनों और उनके विचारों का सविस्तार उल्लेख किया गया है।

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    इस पुस्तक में संक्षेप के साथ उन अधिकांश नेक कार्यों का उल्लेख किया गया है जिनका अज्र व सवाब (पुण्य) आपके लिए एक अतिरिक्त आयु की वृद्धि करेगा, ताकि नेकियों से भरपूर आपका उत्पादक उम्र आपके कालानुक्रमिक उम्र से बड़ी हो जाय। यह किताब एक माइक्रोस्कोप के समान है जो हमारी नज़रों के सामने कई ऐसी हदीसों का एक नया महत्व उजागर करती है जिन्हें हम कभी-कभार पढ़कर बिना मननचिंतन के ही गुज़र जाते हैं। यह किताब तीन अध्यायों पर आधारित हैः प्रथमः उम्र बढ़ाने का महत्व और उसकी अवधारणा दूसराः उम्र को बढ़ाने वाले कार्य, और इसमें चार विषय हैं : पहला विषयः नैतिकता के द्वारा दीर्घायु करना. दूसरा विषय: कई गुना अज्र व सवाब वाले कार्यों द्वारा दीर्घायु करना. तीसरा विषय: मौत के बाद निरंतर जारी रहनेवाले सवाब के कार्यों द्वारा दीर्घायु करना. चौथा विषय: समय का सही उपयोग करके आयु को लम्बी करना। तीसरा अध्याय: नेकियों से भरपूर उत्पादक उम्र की रक्षा करने का तरीक़ा

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    वुज़ू बेहतर सेहत के लिए एक अचूक नुस्खाः वुज़ू सेहत के लिए एक बेहतरीन, कारगर और उपयोगी नुस्खा है। जीव वैज्ञानिकों की मुश्किल से चालीस साल पहले हुई खोजों से ही हम यह जान पाए हैं कि वुज़ू में इन्सानी सेहत के लिहाज से कितने चमत्कारित फायदे छिपे हुए हैं। इन्सानी सेहत के लिए मुख्य रूप से तीन तरह के फायदे हैं जो उसकी बाडी को धोने से जुड़े हैं। शरीर धोने के ये फायदे संचार प्रणाली, प्रतिरक्षा प्रणाली और शरीर के इलेक्ट्रोस्टेटिक बैलेंस से जुड़े हैं। प्रस्तुत पुस्तिका में इसका उल्लेख किया गया है।

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    ज़ुल-हिज्जा के दस दिनों के कार्य : अल्लाह सर्वशक्तिमान की महान कृपा व अनुकम्पा और दानशीलता है कि उसने अपने दासों के लिए नेकियाँ कमाने और पुण्य प्राप्त करने अनेक रास्ते और अवसर प्रदान किए हैं। ज़ुल-हिज्जा के महीने प्राथमिक दस दिन नेकियों का महान अवसर और पर्व है। प्रस्तुत व्याख्यान में ज़ुल-हिज्जा के महीने के प्राथमिक दस दिनों की प्रतिष्ठा और उनके अन्दर वर्णित कार्यों, जैसे- हज्ज और उम्रा की अदायगी, रोज़े रखना - विशेषकर अरफा के दिन का रोज़ा जो दो साल के पापों का प्रायश्चित है-, क़ुर्बानी करना, अधिक से अधिक अल्लाहु अक्बर, ला इलाहा इल्लल्लाह और अल्हम्दुलिल्लाह कहना तथा आज्ञारिता के अन्य कार्य करने, का उल्लेख किया गया है।

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    हज्ज का संक्षिप्त विवरण : हज्ज एक महान वैश्विक अवसर है, जिसमें दुनिया के कोने-कोने से आकर मुसलमान अल्लाह के पवित्र घर मक्का मकर्रमा में एकत्रित होते हैं ; ताकि उस महान कर्तव्य को पूरा करें जो जीवन में केवल एक बार अनिवार्य है। प्रस्तुत व्याख्यान में हज्ज की अनिवार्यता, उसकी फज़ीलत, इस यात्रा के लिए हलाल धन की आपूर्ति, तथा इसे खालिस अल्लाह के लिए और उसके पैगंबर के बताए हुए तरीक़े के अनुसार अदा करने का उल्लेख है। इसी हज्ज के निर्धारित स्थानों (मीक़ात), एहराम बांधने के समय ऐच्छिक चीज़ों, एहराम की अवस्था में वर्जित और निषिद्ध चीज़ों और संक्षेप के साथ उम्रा और हज्ज की विधि का उल्लेख किया गया है।

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    हिज्जा के दस दिनों की प्रतिष्ठा: इस उम्मत पर अल्लाह का बहुत बड़ा उपकार और एहसान है कि उसने उन्हें नेकी के ऐसे अवसर प्रदान किए हैं, जिनमें वे नेक कार्य कर अल्लाह की अधिक निकटता और कई गुना पुण्य और इनाम प्राप्त कर सकते हैं। उन्हीं अवसरों में एक महान अवसर ज़ुल-हिज्जा के महीने के प्राथमिक दस दिन हैं। ये साल के सबसे श्रेष्ठ दिन हैं, औ इनके अन्दर नेक कार्य करना अल्लाह को अन्य दिनों के मुक़ाबले मे अधिक प्रिय और पसंदीद है। इसिलए इन दिनों में अधिक से अधिक अल्लाहु अक्बर, ला इलाहा इल्लल्लाह और अल्हम्दुलिल्लाह कहना चाहिए, तथा अन्य उपासना कृत्य करना चाहिए। इन्ही दिनों में एक महान इबादत हज्ज भी अदा किया जाता है। प्रस्तुत व्याख्यान में इन्ही बातों का उल्लेख करते हुए, अल्लाह के पवित्र घर और वहाँ की स्पष्ट निशानियों- मक़ामे इब्राहीम, हज्रे-अस्वद, ज़मज़म के कुआं के उल्लेख

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    प्रस्तुत वीडियो में इस्लाम के पाँचवे स्तंभ अल्लाह के पवित्र व सम्मानित घर ’काबा’ के हज्ज के वर्णन पर आधारित है। इसमें हज्ज की परिभाषा, उसकी अनिवार्यता, उसकी प्रतिष्ठा व महानता और इस्लाम धर्म में उसके महत्वपूर्ण स्थान का उल्लेख करते हुए ’’हज्ज मबरूर’’ की शर्तों और हज्ज के धार्मिक व सांसारिक लाभों का वर्णन किया गया है। इसी तरह हज्ज के अर्कान व वाजिबात, हज्ज के भेदों, मीक़ात यानी हज्ज के निर्घारित स्थानों, मीक़ात पर किए जाने वाले कामों, एहराम की विधि, एहराम बाँधने के बाद निषिद्ध हो जाने वाली चीज़ों, मस्जिदे हराम –मक्का मुकर्रमा- पहुँचकर मोहरिम को क्या करना चाहिए, तथा हज्ज की संपूर्ण प्रक्रिया का संक्षेप उल्लेक किया गया है।

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    आदरणीय शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया कि एक आदमी की मृत्यु हो गयी और उसने हज्ज नहीं किया, जबकि वह चालीस साल का था और हज्ज करने पर सक्षम था। हालांकि वह पाँच समय की नमाज़ों की पाबंदी करनेवाला थ। वह हर साल कहता था कि : इस साल मैं हज्ज करूँगा। उसकी मृत्यु हो गयी और उसके वारिस हैं, तो क्या उसकी तरफ से हज्ज किया जायेगा? और क्या उसके ऊपर कोई चीज़ अनिवार्य है?

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    आदरणीय शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया किः मेरी एक पत्नी है जिसने हज्ज नहीं किया है, तो क्या मेरे ऊपर अनिवार्य है कि मैं उसे हज्ज कराऊँ? और क्या हज्ज में उसका खर्च मेरे ऊपर अनिवार्य है? और अगर वह मेरे ऊपर अनिवार्य नहीं है तो क्या उससे समाप्त हो जायेगा?

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    नेकियों पर स्थिरताः अल्लाह तआला ने बन्दों को मात्र अपनी उपासना के लिया पैदा किया है और उन्हें अपनी आज्ञाकारिता का आदेश दिया है, और मृत्यु से पहले इसकी कोई सीमा निर्धारित नहीं किया है, बल्कि उन्हें मृत्यु के आने तक नेक कार्यों पर जमे रहने का आदेश दिया है। हमारे सन्देष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम तथा पुनीत पूर्वजों का यही तरीक़ा था कि वे इस पहलू पर काफी ध्यान देते थे। प्रस्तुत व्याख्यान में निरंतर नेक कार्य करने और पूजा कृत्यों पर जमे रहने पर बल दिया गया है, यहाँ तक कि आदमी की मृत्यु आ जाए, और इस दुनिया में उसका अन्त अच्छे कार्यों पर हो ताकि परलोक के दिन इसी हालत में उसे उठाया जाए। इसी तरह उन नाम-निहाद औलिया का खण्डन किया गया है जो झूठमूठ यह दावा करते हैं कि वे इस स्तर पर पहुँच गए हाँ जहाँ उनके लिए शरीअत की प्रतिबद्धता समाप्त हो जाती है!!!

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    यह शव्वाल के महीने और उसके छः दिनों के रोज़े से संबंधित संक्षिप्त प्रावधान हैं, जिन्हें आदरणीय शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़ और अल्लामा मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुमल्लाह के फतावा संग्रह से चयन कर प्रस्तुत किया गया है।

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    कुछ लोग रमज़ान की सत्ताईसवीं रात को लैलतुल-क़द्र से चर्चित करते हैं . . . तो क्या इस निर्धारण (चयन) का कोई आधार है? और क्या इसका कोई प्रमाण है?

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    रमज़ान के अंतिम दस दिनों की फज़ीलतः इस उम्मत पर अल्लाह का बहुत बड़ा उपकार है कि उसने उन्हें रमज़ान के अंतिम दस दिनों में एक ऐसी रात प्रदान किया है, जो हज़ार महीनों (अर्थात 83 वर्षों) से अधिक बेहतर है। इसीलिए इस रात को पाने के लिए पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एतिकाफ़ करते थे और नेकी के कार्यों में बहुत संघर्ष करते थे, रातों को जागते थे और अपने परिवार को भप जगाते थे। प्रस्तुत व्याख्यान में इसी पर चर्चा किया गया है।

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    रोज़े की रक्षाः रोज़ा मात्र खाना पानी छोड़ देने, या कुछ रोज़ा तोड़ने वाली चीज़ों से रुक जाने का नाम नहीं है। बल्कि वास्तविक रोज़ा गुनाहों से रुक जाने, उनसे दूर रहने का नाम है। प्रस्तुत व्याख्यान में, इस पवित्र महीने में गुनाहों में पड़ने से चेतावनी देते हुए, झूठ, हराम (निषिद्ध) चीज़ों को देखने, सुनने, बोलने और करने से रोज़े को सुरक्षित रखने पर ज़ोर दिया गया है। विशेषकर पाँच समय की दैनिक नमाज़ों मे कोताही व लापरवाही करने से सावधान किया गया है, जिसके बारे में शरीअत में कड़ी चेतावनी आई है। इसी तरह, रोज़े के अलावा रमज़ान के महीने में अन्य एच्छिक कार्यों जैसे- तरावीह की नमाज़, क़ियामुल्लैल और अधिक से अधिक क़ुरआन करीम का पाठ करने का उल्लेख किया गया है।

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    रोज़ा तोड़नेवाली चीज़ें : इस व्याख्यान में रोज़े की अनिवार्यता का चर्चा करते हुए, उसकी अनिवार्यता को नकारने वाले अथवा बिना किसी वैध कारण के रोज़ा न रखने वाले का हुक्म उल्लेख किया गया है। तथा जिन लोगों के लिए रमज़ान के महीने में रोज़ा न रखने की छूट दी गई है, उनके कारणों का उल्लेख करते हुए, उन चीज़ों का खुलासा किया गया है जिनसे रोज़ा टूट जाता है। इसी तरह सेहरी करने और उसे अंतिम समय तक विलंब करने के बेहतर होने का चर्चा करते हुए, रमज़ान के दिन में संभोग करने के कफ्फारा (परायश्चित) पर सविस्तार प्रकाश डाला गया है।

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    रमज़ान के स्वर्ण अवसर को गनीमत समझोः अल्लाह का अपने बन्दों पर बहुत बड़ उपकार है कि उसने उन्हें प्रतिष्ठित वक़्तों और उपासना के महान अवसरों से सम्मानित किया है ; ताकि वे अधिक से अधिक सत्कर्म कर कर सकें और दुष्कर्मों से पश्चाताप कर सकें। उन्हीं में से एक महान अवसर रमज़ानुल मुबारक का महीना है। यह एक ऐसा महान और सर्वश्रेष्ठ महीना है जिसे पाने के लिए हमारे पुनीत पूर्वज छः महीना पहले से ही दुआ किया करते थे और उसका अभिवादन करने के लिए तत्पर रहते थे। जब यह महीना आ जाता तो वे अल्लाह की आज्ञाकिरता के कामों में जुट जाते और कठिन परिश्रम करते थे। लेकिन आज के मुसलमान इस महीने के महत्व से अनभिज्ञ हैं या लापरवाही से काम लेते हैं और इस महीने को अन्य महीनों के समान गुज़ार देते हैं, उनके जीवन में कोई बदलाव नहीं आता है। इसीलिए अल्लाह ने ऐसे व्यक्ति को अभागा घोषित किया है! प्रस्तुत व्याख्यान में रमज़ान के महीने की फज़ीलत-प्रतिष्ठा पर चर्चा करते हुए, इस महीने की महान घड़ियों और क्षणों से भरपूर लाभ उठाने पर बल दिया गया है, तथा रमज़ान के रोज़ों के बारे में कोताही करने पर कड़ी चेतावनी दी गई है और उसके दुष्परिणाम से अवज्ञत कराया गया है।

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    रोज़े की अनिवार्यता और उसके प्रावधानः प्रस्तुत आडियो में रमज़ान के महीने के रोज़े की अनिवार्यता, क़ुरआन व हदीस से उसकी अनिवार्यता के प्रमाणों, उसकी अनिवार्यता की शर्तों और रोज़े की तत्वदर्शिता का उल्लेख किया गया है। इसी तरह रोज़े के कुछ प्रावधानों, जैसे- रोज़े की नीयत, उसका अर्थ और नीयत का स्थान, तथा सेहरी करने की फज़ीलत व महत्व का उल्लेख किया गया है।