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Introducing Islam to Muslims

आइटम्स की संख्या: 12

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    मैं मुसलमान हूँ

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    सुखी जीवन के उपयोगी साधनः हिंदी भाषा की यह पुस्तक डॉक्टर हैस़म सरहान द्वारा रचित है। वास्तव में यह पुस्तक अल्लामा सादी रह़िमहुल्लाह द्वारा लिखित मूल पुस्तक “सुखी जीवन के लिए उपयोगी संदेश” का संक्षिप्तीकरण है, जिसमें उन्होंने उन उपयोगी माध्यमों का उल्लेख किया है जिन के द्वारा सौभाग्यशाली जीवन जीना सुगम हो जाता है, इसके अतिरिक्त उन साधनों एवं ढ़ंगों का उल्लेख करने के साथ-साथ उन्हें प्राप्त करने के उपाय भी सुझाए गए हैं, विशेष बात यह है कि ये सभी बातें क़ुरआन एवं ह़दीस़ से मय प्रमाण बयान की गई हैं। लेखक महोदय ने छोटे-छोटे बिंदुओं के रूप में व्यवस्थित कर इसे सुंदर ढ़ंग से प्रस्तुत किया है।

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    यह छोटी सी पुस्तक क़ुरआन व हदीस एवं मुसलमानों की सहमति पर आधारित साक्ष्यों को बयान करती है जो संगीत पर आधारित गानय व संगीत एवं बेकार खेलकूद के वाद्ययंत्र की अवैधता पर साक्षी है; इसके अतिरिक्त इन की अवैधता का कारण भी बयान करती है, वह यह कि गानय एवं संगीत हृदय में रोग उत्पन्न कर देता है और इस से क़ुरआन की प्रियता को दूर कर देता है, यही कारण है कि जिस मनुष्य को संगीत सुनने की लत लग जाती है वह (अन्य मनुष्य के विपरीत) सबसे कम क़ुरआन याद करने, उसका सस्वर पाठ करने, उसको अपने जीवन में लागू करने के अभ्यासी होते हैं, अल्लाह तआ़ला इस बात से भली-भांति अवगत है के मनुष्य का सुधार किन माध्यमों से हो सकता है एवं कौन सी चीजें उनमें बिगाड़ उत्पन्न कर सकती हैं इस कारणवश अल्लाह ने उन्हें क़ुरआन व हदीस सुनने का आदेश दिया है, अच्छी बातों को सुनना उनके लिए वैध किया है एवं संगीत व नकारात्मक बातों को सुनना उनके लिए अवैध कर दिया है, क्योंकि इससे हृदय रोगी हो जाता है और जब हृदय रोगी हो जाए तो शरीर के संपूर्ण अंग रोग से पीड़ित हो जाते हैं।

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    दुश्मनों के क्या अधिकार हैं? इसका परिचय सबसे पहले इस्लाम ने दिया है। युद्ध के शिष्टाचार की कल्पना से दुनिया बिल्कुल बेख़बर थी। पश्चिमी दुनिया इस कल्पना से पहली बार सत्रहवीं सदी के विचारक ग्रोशियूस (Grotius) के ज़रिये से परिचित हुई। मगर अमली तौर पर अन्तर्राष्ट्रीय युद्ध नियम उन्नीसवीं सदी के मध्य में बनाना शुरू हुए। इससे पहले युद्ध के शिष्टाचार का कोई ख़्याल पश्चिम वालों के यहां नहीं पाया जाता था। जंग में हर तरह के जु़ल्म व सितम किए जाते थे और किसी तरह के अधिकार जंग करने वाली क़ौम के नहीं माने जाते थे। उन्नीसवीं सदी में और उसके बाद से अब तक जो नियम भी बनाए गए हैं, उनकी अस्ल हैसियत क़ानून की नहीं, बल्कि संधि की सी है। उनको अन्तर्राष्ट्रीय क़ानून कहना हक़ीक़त में ‘क़ानून’ शब्द का ग़लत इस्तेमाल है। क्योंकि कोई क़ौम भी जंग में उस पर अमल करना अपने लिए ज़रूरी नहीं समझती। सिवाए इसके कि दूसरा भी उसकी पाबन्दी करे। यही वजह है कि हर जंग में इन तथाकथित अन्तर्राष्ट्रीय नियमों की धज्जियां उड़ाई गईं और हर बार उन पर पुनर्विचार किया जाता रहा, और उन में कमी व बेशी होती रही। इसके विपरीत, इस्लाम ने जंग के जो शिष्टाचार बताए हैं, उनकी सही हैसियत क़ानून की है, क्योंकि वे मुसलमानों के लिए अल्लाह और रसूल के दिए हुए आदेश हैं, जिनकी पाबन्दी हम हर हाल में करेंगे, चाहे हमारा दुश्मन कुछ भी करता रहे। अब यह देखना हर ज्ञान रखनेवाले का काम है कि जो जंगी-नियम चौदह सौ साल पहले तय किए गए थे, पश्चिम के लोगों ने उसकी नक़ल की है या नहीं, और नक़ल करके भी वह जंग की सभ्य मर्यादाओं के उस दर्जे तक पहुंच सका है या नहीं, जिस पर इस्लाम ने हमें पहुंचाया था।

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    जीवन का सीधा और सच्चा मार्ग पाने के लिए मनुष्य को सदैव ईश्वरीय मार्ग-प्रदर्शन की आवश्यकता होती है। इससे हटकर वह सीधा मार्ग नहीं पा सकता। इसी उद्देश्य के लिए अल्लाह सर्वशक्तिमान ने किताबें उतारीं और अपने सन्देष्टा भेजे, जिन्हों ने लोगों के समक्ष अल्लाह के संदेश को प्रस्तुत किया, उसके अभिप्राय को स्पष्ट किया और उसके अनुसार चलकर दिखाया ; ताकि लोगों को अल्लाह के आदेशों के अनुसार जीवन व्यतीत करने का तरीक़ा पता चल जाए। इसकी अंतिम कड़ी हमारे सन्देष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं, जिन पर नुबुव्वत व रिसालत का सिलसिला संपन्न हो जाता है और आपकी रिसालत को स्वीकार करना और उसका अनुपालन करना परलोक तक आनेवाली समस्त मानव जातियों के लिए कर्तव्य और दायित्व करार दिया जाता है, क्योंकि इसके बाद अल्लाह की ओर से कोई अन्य संदेष्टा, कोई और मार्ग-दर्शक अवतरित नहीं होगा। प्रस्तुत लेख में अंतिम सन्देष्टा के जीवन आदर्श का उल्लेख किया गया है।

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    प्रस्तुत लेख मदीना नबविया की ज़ियारत करनेवालों के लिए कुछ निर्देशों पर आधारित है जिसमें उन चीज़ों का उल्लेख किया गया है जिनका करना वैध और धर्मसंगत है, जैसे - मस्जिदे नबवी की ज़ियारत करना और उसमें नमाज़ पढ़ना, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की क़ब्र और आपके दोनों साथियों की क़ब्रों की ज़ियारत और उन पर सलाम, तथा मस्जिदे क़ुबा की ज़ियारत और उसमें नमाज़ पढ़ना, बक़ीउल गर्क़द और उहुद के शहीदों की उनपर सलाम पढ़ने और उनके लिए दुआ करने के लिए ज़ियारत करना। इसी तरह उन चीज़ों का भी उल्लेख किया गया है जिनका करना अवैघ और नाजायज़ है, जैसे - मस्जिदे नबवी के किसी भाग या नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कमरे की दीवारों या जालियों आदि को छूकर या चूकमकर बर्कत हासिल करना वग़ैरह।

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    प्रस्तुत लेख में मस्जिदे नबवी की ज़ियारत के शिष्टाचार और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तथा आपके दोनों साथियों अबू बक्र व उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा पर सलाम पढ़ने के तरीक़े का उल्लेख किया गया है।

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    इस्लाम ज्ञान और जानकारी का धर्म है, चुनाँचि क़ुर्आन करीम की जो सर्व प्रथम आयत उतरी वह पढ़ने का आदेश देती है जो कि हर प्रकार के विज्ञान की कुंजी है। प्रस्तुत लेख में इस्लाम धर्म में ज्ञान का महत्व और उसकी विशेषता, ज्ञान को सीखने और सिखाने की फज़ीलत, तथा ज्ञानियों के महान पद और स्थान का वर्णन किया गया है।

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    इस लेख में पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म दिवस के अवसर पर यादगार समारोह आयोजित करने का शरई हुक्म उल्लेख करते हुये इन तत्वों को स्पष्ट किया गया है कि इस का आरम्भ कैसे हुआ, सर्व प्रथम किन लोगों ने इस का प्रदशZन किया, इस समारोह के आयोजन के साथ क्या अन्य बुराईयां घटित होती हैं, तथा इस समारोह के अवैध होने के क्या कारण हैं। इसी प्रकार इस समारोह को मनाने और इसे वैध समझने वाले जिन प्रमाणों का सहारा लेते हैं उन का विश्लेशण करते हुये उन का उत्तर दिया गया है और या निष्कर्ष प्रस्तुत किया गया कि वे मात्र सन्देह और आशंकाये हैं जो मकड़ी के जाले से भी अधिक कमज़ोर हैं।

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    दीन में बिद्अत और ईद मीलादुन्नबी का उत्सवः बिद्अत कुफ्र की डाक और उसका सूचक है, और जो आदमी इसके जाल में फंस जाता है उसकी बुद्धि उलटी हो जाती है और वह अपनी बिद्अत को पुण्य का कार्य समझ कर अन्जाम देता है, बल्कि दूसरों को भी उसकी ओर न्योता देता है, जबकि वह पुण्य और अल्लाह की निकटता से कोसों दूर होता है और होता ही चला जाता है। इस लेख में बिद्अत की परिभाषा, तथा पैंग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल, आपके सहाबा और पूर्वजों के कथनों की रौशनी में उसकी वास्तविकता को स्पष्ट किया गया है। साथ ही साथ वर्तमान समय के एक घृणित बिद्अत ईद मीलादुन्नबी की व्यर्थता को स्पष्ट करते हुए इस बिद्अत के समर्थकों के सन्देहों का खण्डन भी किया गया है।

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    इस लेख में अल्लाह के अन्तिम पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जीवन चरित्र और आप के अतिरिक्त अन्य भूतपूर्व ईश्दूतों की जीवनियों, तथा वर्तमान युग में प्रचलित अन्य धर्मों और मतों के प्रस्थापकों की जीवनियों और उनके सिद्धान्तों की तुलना करते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि पूरे मानव इतिहास में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सिवाए कोई ऐसी व्यक्तित्व नहीं है जिस की जीवनी सर्व संसार के लिए रहती दुनिया तक आदर्श जीवन का नमूना और अनुकरण के योग्य हो।

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    ईद मीलादुन्नबी का ऐतिहासिक एंव धार्मिक दृश्य : हर वर्ष रबीउल-अव्वल के महीने में 12 तारीख को बडी़ धूम-धाम और हर्ष व उल्लास से ईद मीलादुन्नबी का उत्सव मनाया जाता है, जबकि वास्तव में यह ऐतिहासिक दृष्टि से निराधार एंव धार्मिक दृष्टि से अवैध है। इस लेख में ईद मीलादुन्नबी की ऐतिहासिक एंव धार्मिक वास्तविकता को स्पष्ट किया गया है।