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मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद - फत्वे

आइटम्स की संख्या: 72

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    अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जिस दिन पैदा हुए उसका क्या महत्तव है, तथा उस दिन को कब और कैते मनाया जाता है ?

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    मैं एक अवधि से इस्लाम को व्यवहार में ला रही हूँ और यदि अल्लाह ने चाहा तो मैं उसे स्वीकार करने की इच्छा रखती हूँ, लेकिन मुझे कुछ खतरनाक समस्याओं का सामना है। मैं और मेरे पति एक अवधि से वैवाहिक समस्याओं से जूझ रहे हैं, बावजूद इसके कि मामला ठीक ठाक चल रहा है किंतु मै सुनिश्चित नहीं हूँ कि स्थिति सदा इसी तरह बनी रहेगी क्योंकि उसे सख्त क्रोध के दौरे पड़ते हैं, और जब से हमारे वकील ने मुझे इसकी सलाह दी है, मैं गंभीरता से उससे अलग होने के बारे में सोच रही हूँ। समस्या यह है कि अब मुझे उससे प्यार नहीं है, इसके अलावा वह मुझे इस्लाम स्वीकारने से रोकता है तथा वह स्वयं भी इस्लाम स्वीकार करने से इनकार करता है, और उसका कहना है कि वह मेरे इस्लाम क़बूल करने पर हमारे अलग हो जाने को प्राथमिकता देगा। दूसरी समस्या यह है कि मेरे पास दो बेटियाँ हैं जो एक हिंदू स्कूल में पढ़ रही हैं, तो मेरे इस्लाम में प्रवेश करने के बाद उन दोनों से संबंधित शरीअत का हुक्म (प्रावधान) क्या है। मेरी मुलाक़ात एक मुसलमान व्यक्ति से हुई है जिससे मैं प्यार करती हूँ और वह भी मुझे बहुत प्यार करता है, वह मुझसे दो बार शादी करने का अनुरोध कर चुका है, ज्ञात रहे कि मैं उसके साथ नहीं सेती हूँ और न ही इसतरह की कोई चीज़ मेरे दिल में है। और वह मेरी दोनों बेटियों को स्वीकार करने के लिए तैयार है यदि वे दोनों भी इस्लाम में प्रवेश कर लेती हैं। उसने कहा है कि वह साल के अंत तक प्रतीक्षा करेगा उसके बाद वह अपने मामले में व्यस्त हो जायेगा, क्योंकि कुछ अन्य महिलाएं भी हैं जिनके साथ वह घर बसा सकता है, परंतु वह मुझे उनपर प्राथमिकता देता है। मुझे बहुत सी चीज़ों के अंदर अपने मामले में सावधानी और दूरदर्शिता से काम लेने की आवश्यकता है, इसके होते हुए भी में अपने पति के प्रति खेद और पाप का आभास करती हूँ, क्योंकि वह हमारे विवाह को सफल बनाने की चेष्टा करता है। लेकिन खेद की बात यह हैं कि धर्म बहुत बड़ी रूकावट बनता है।

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    मैं एक हिंदू हूँ, मेरे अंदर इस्लाम के प्रति मज़बूत रूझान और झुकाव पैदा हो गया है। आपकी वेबसाइट की तरह वेबसाइट पृष्ठ मेरे जैसे लाखों युवाओं के लिए अल्लाह की ओर से एक दया है। निकट ही यदि अल्लाह की इच्छा हुई तो मैं इस्लामी दुनिया से अपनी संबंद्धता की घोषणा करूँगा। आशा है कि आप मेरे लिए इस्लाम धर्म में प्रवेश करने के लिए दुआ करेंगे। तथा मुझे आशा है कि - अल्लाह की तौफीक़ से - ये अच्छे कार्य जिसे आप जैसे लोग अंजाम दे रहे हैं, जारी रहेंगे।

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    मैं जिस विश्वविद्यालय में पढ़ता हूँ उसमें मुसलमानों की असंख्या अधिक नहीं है। यहाँ तक कि जो मुसलमान वहाँ मौजूद हैं उनके पास दीन का अधिक ज्ञान नहीं है। विश्वविद्यालय में मेरे अधिकांश ग़ैर मुस्लिम मित्र मुझसे इस्लाम के बारे में प्रश्न करते रहते हैं, और यह आमतौर पर हमारे बीच लोगों से हटकर एकांत में होता है, तो क्या उन्हें इस्लाम से संतुष्ट करने के उद्देश्य से ऐसा करना जाइज़ है ?

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    मैं जानना चाहता हूँ कि क्या सत्य धर्म इस्लाम में रूचि रखने वाले व्यक्ति के लिए कोई प्रारंभिक बिंदु है क्योंकि मुझे बहुत से अलग अलग उत्तर प्राप्त हुए हैं ॽ

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    मैं संयुक्त राज्य (अमेरिका) में एक कालेज में पढ़ता हूँ। और मैं आप से यह प्रश्न इस लिये कर रहा हूँ ताकि मैं उस से अपने अनुसंधान (और उस ने विषय का नाम उल्लेख किया) में लाभान्वित हो सकूँ। आप लोगों के पास इस बात का प्रमाण (सबूत) क्या है कि जिब्रील (अलैहिस्सलाम) ने मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से बात चीत की है ?

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    आप से अनुरोध है कि इस्लामी बैंकिंग के बारे में किसी प्रामाणिक पुस्तक की सिफारिश करें ताकि मैं किसी नौकरी के लिए आवेदन करते या किसी व्यापारिक अनुबंध में प्रवेश करते समय इस बात को जानने पर सक्षम हो सकूँ कि जिस बैंक के साथ मैं लेन देन कर रहा हूँ वह वास्तव में एक इस्लामी बैंक है।

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    मेरे पति मुझसे बहुत बड़े हैं जिसका मतलब यह होता है कि हो सकता है वह मुझसे पहले मर जाएं। यह मात्र मेरी धारणा है इस एतिबार से कि मैं ऐसे परिवार से हूँ जिनकी आयू लंबी होती है, अर्थात मेरे परिवार के लोग आमतौर पर लंबे समय तक जीते हैं। यही चीज़ है जो मुझे, अपने और उसके बीच उम्र के अंतर को देखते हुए, इस धारणा पर उभारती है। हालांकि पति की मौत अपने आप में एक आपदा है, परंतु मैं एक दूसरी चीज़ के बारे में सोच रही हूँ और वह यह कि यदि उसकी मृत्यु हो गई तो मेरा क्या होगा और मैं कहाँ रहूँगी . . ! इस समय जिस घर में हम रह रहे हैं वह एक छोटा सा घर है, इसके बावजूद वह उसके सभी रिश्तेदारों के बीच विभाजित हो सकता है। यह बात सही है कि वह इस समय मेरा बहुत ही ध्यान रखता है, लेकिन उसके मरने पर जो हिस्सा पत्नी का उसके पति की मृत्यु के बाद होता है वह घर खरीदने के लिए काफी नहीं होगा, यहाँ तक कि वह माल जो उसने मुझे शादी के समय महर के तौर पर दिया था वह केवल चंद गिने चुने दिनों के लिए काफी होगा। तथा मैं अपने परिवार वालों की वारिस नहीं हो सकती हूँ क्योंकि वे सभी ग़ैर-मुस्लिम हैं। मैं ने गंभीरता के साथ अगले दस या पंद्रह साल तक के लिए बच्चे पैदा करने से रूक जाने के बारे में सोचना शुरू कर दिया है (अभी तक उससे मेरे कोई बच्चा नहीं है), मैं इन सालों में काम करने के लिए जाऊँगी और धन एकत्र करूँगी ताकि अपना अलग घर खरीद सकूँ, फिर यदि मेरे बच्चे पैदा होते हैं और मेरे पति की मृत्यु हो जाती है तो वह एक शरणस्थल (आश्रय) हो जो मेरी और मेरे बच्चों की परागंदगी को एकत्र कर दे, इस बात से बेहतर है कि हम सड़क पर या दूसरों पर बोझ बनकर ज़िंदगी बितायें। लेकिन यहाँ पर एक दूसरी समस्या भी है और वह यह कि यदि मैं ऐसा करती हूँ तो इसका मतलब यह होगा कि हो सकता है कि मेरे पति उर्वरता और प्रजनन के चरण को पार कर जायें। तो इस बारे में आपका विचार क्या है ॽ

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    कुछ महीने हुए एक युवा के साथ मेरी शादी हुई है जो एक नास्तिक देश में रहता है, और यह तथ्य कि उसने अपने परिवार, जो कि एक सभ्य और खुला परिवार है, के विरोध के बावजूद मेरे नक़ाब पहनने के विचार को स्वीकार कर लिया, मुझे प्रभावित करता है और वह मेरी दृष्टि में बहुत बड़ा बन गया है। जहाँ तक उसकी बात है तो वह समय बीतने के साथ धार्मिकता को और अधिक पसंद करने लगा और इस बात पर अल्लाह का गुणगान करता है कि उसे एक दीनदार (धर्मनिष्ठ) पत्नी प्रदान की, और मैं यह महसूस करने लगी कि मुझे कामयाब जोड़ी मिल गई। लेकनि मुझे प्रतीक हुआ कि वह मेरे काम करने के विषय पर ज़ोर देता है, वह मुझसे चाहता है कि मैं काम करने के लिए बाहर निकलूँ और कुछ पैसा कमाऊँ ताकि उसकी मदद कर सकूँ। वह कहता है कि वह आर्थिक रूप से स्थिर नहीं है और उसे मदद की आवश्यकता है, शायद वह अप्रत्यक्ष रूप से यह संकेत दे रहा है कि मैं अपने पिता को जो कि एक अमीर आदमी हैं, बताऊँ कि वह हमारी सहायता करें। यह बात कल्पना में भी नहीं थी, क्योंकि मैं एक ऐसी औरत हूँ कि घर पर रहना चाहती हूँ ताकि अपनी वैवाहिक जीवन और घर के मामलों की देखभाल करूँ, और मैं ने कई बार उस के साथ इस मुद्दे पर बात की है कि यह मेरे लिए किसी भी तरह उचित नहीं है, लेकिन वह मेरी बात को गंभीरता से नहीं लेता है, जिसकी वजह से मैं इस संबंध में अपने पिता से बात करने पर मजबूर हो गई ताकि वह हमारे लिए इसका समाधान खोजें। यह मुद्दा मुझे बहुत परेशान कर रहा है, और मैं इन सब का अंत करना चाहती हूँ। इसलिए मैं ने इस शादी के अनुबंध को रद्द करने अर्थात तलाक़ के बारे में सोचा है। लेकिन मुझे याद आ रहा है कि इस शादी पर सहमत होने से पहले मैं ने इस्तिखारा की नमाज़ पढ़ी थी, तथा मेरे माता पिता उससे और उसके परिवार से प्यार करते हैं, किंतु अब मैं अलग भावना का एहसास करती हूँ, और मै ने पाया है कि हमारे कुछ धार्मिक एवं सांसारिक मुद्दों के समझ से संबंधित हम दोनों के बीच विशाल अंतर पाया जाता है। तो मेरी समझ में नहीं आता कि मैं क्या करूँ ॽ क्या कोई सलाह व नसीहत है ॽ

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    मैं एक युवती हूँ और एक मुस्लिम युवा से शादी के लिए प्रस्तावित हूँ जो मुझे बहुत प्यार करता है और अल्लाह की आज्ञा से हम शादी के बहुत निकट हैं। मेरे मंगेतर ने मेरे ऊपर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिया कि मैं उसे दूसरों पुरूषों के साथ अपने पिछले संबंधों के बारे में बताऊँ। तो मैं ने उसे दो संबंधों के बारे में बताया जो दो युवाओं से उस समय स्थापित हुए थे जब मैं केवल 18 वर्ष की थी और उसमें कुछ निषिद्ध काम हुए थे किंतु मैं ने उसे उसके विवरण के बारे में सूचित नहीं किया क्योंकि मैं ने उन हराम कामों से अल्लाह से तौबा (पश्चाताप) कर लिया है, और यह फैसला किया है कि एक नये जीवन का आरंभ करूँ। परंतु मेरे मंगेतर ने उस युवा से एसएमएस के माध्यम से संपर्क कर लिया और उस पुराने मित्र ने उसे सारी कहानी सुना दी। अब मेरा मंगेतर हमारी शादी को इसलिए पूरा करना चाहता है कि तैयारी पहले से हो चुकी है (केवल पाँच दिन रह गए हैं) और परिवार के सभी सदस्य इसके लिए सहमत हैं, तो वह केवल अपने परिवार के सामने अपनी छवि बचाने के लिए इस शादी को संपन्न करना चाहता है, किंतु वह एक समय के बाद मुझे तलाक़ दे देगा। क्या मैं उसे अपने अतीत के सभी विवरण बता दूँ ॽ

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    इस्लाम की शुरूआत कब हुई ॽ तथा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और ईसा अलैहिस्सलाम के बीच कितना अंतराल है ॽ

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    क्या हमारे लिए यह कहना जायज़ है कि हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु शहीद होकर मरे थे ॽ

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    चूँकि मैं एक मुसलमान हूँ, इसलिए निरंतर यह बात सुनता रहता हूँ कि मदीनतुल-क़ुद्स हमारे लिए महत्व पूर्ण है। परंतु इसका कारण क्या है ॽ मैं जानता हूँ कि ईशदूत याक़ूब (अलैहिस्सलाम) ने उस नगर में मस्जिदुल अक़्सा का निर्माण किया, और हमारे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पिछले ईश्दूतों की उसके अंदर नमाज़ में इमामत करवाई, जिस से संदेश और ईश्वरीय वह्य की एकता की पुष्टि होती है, तो क्या इस नगर के महत्वपूर्ण होने का कोई अन्य मूल कारण भी है ॽ या केवल इस कारण कि हमारा मामला मात्र यहूद के साथ है ॽ मुझे लगता है इस नगर में यहूद का हमसे अधिक हिस्सा है।

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    क्या दो जुर्राबों (मोज़ों) पर एक दूसरे के ऊपर मसह करना जाइज़ है ? और यदि ऐसा करना जाइज़ है और उसने मसह कर लिया किंतु उसने पहला मोज़ा निकाल दिया फिर उसका वुज़ू टूट गया तो क्या उसके लिए अब मसह करना जाइज़ है या नहीं ?

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    जब मैं बच्चा था तो मुझसे बताया गया था कि जब अल्लाह ने इब्लीस को जन्नत से निकाल दिया और जब फरिश्तों ने अल्लाह के सख्त क्रोध को देखा तो वे दुबारा सज्दे में गिर गए, इसी कारण हम नमाज़ में दो बार सज्दा करते हैं, तो क्या इस में कोई सच्चाई है ॽ मैं इसका कोई हवाला (स्रोत) ढूंढ़ने में असमर्थ हूँ, क्या आप कृपया इसका स्पष्टीकरण कर सकते हैं ॽ

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    मेरा एक भांजा है जिसकी आयु आठ साल है, वह एक बार अचानक मुझसे यह प्रश्न कर बैठा कि शीया लोग कौन हैं ॽ मेरी समझ में नहीं आया कि उसे क्या जवाब दूँ, परंतु मैं ने उससे यह कहा कि बड़े होने के बाद तुम्हें पता चल जायेगा ! लेकिन वह इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ, और जब मेरे भाँजे ने जिसकी आयु दस साल है उससे कहा कि हम लोग सुन्नी हैं, तो उसने उसके जवाब में कहा कि मैं शीया हूँ। तो इसका क्या जवाब है जो उसकी आयु के हिसाब से उचित हो और वह उससे सन्तुष्ट भी हो जाए ॽ

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    मेरे ऊपर रमज़ान के रोज़े की क़ज़ा अनिवार्य है और मैं आशूरा (दसवें मुहर्रम) का रोज़ा रखना चाहता हूँ। क्या मेरे लिए क़ज़ा करने से पहले आशूरा का रोज़ा रखना जाइज़ है ? तथा क्या मेरे लिए रमज़ान के रोज़े की क़ज़ा की नीयत से आशूरा (यानी दसवें मुहर्रम) और ग्यारहवें मुहर्रम का रोज़ा रखना जाइज़ है ? और क्या मुझे आशूरा के रोज़े की फज़ीलत प्राप्त होगी ?

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    मैं इस वर्ष आशूरा (दसवें) मुहर्रम का रोज़ा रखना चाहता हूँ। मुझे कुछ लोगों ने बताया है कि सुन्नत का तरीक़ा यह है कि मैं आशूरा के साथ उसके पहले वाले दिन (नवें मुहर्रम) का भी रोज़ा रखूँ। तो क्या यह बात वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इसका मार्गदर्शन किया है ?

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    क्या यह जायज़ है कि मैं केवल आशूरा के दिन का रोज़ा रखूँ, उस से पहले एक दिन या उसके बाद एक दिन का रोज़ा न रखूँ ?

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    मैं ने सुना है कि आशूरा का रोज़ा पिछले साल के गुनाहों का कफ्फारा (प्रायश्चित) बन जाता है, तो क्या यह बात सही है ? और क्या हर गुनाह यहाँ तक कि बड़े गुनाहों का भी कफ्फारा बन जाता है ? फिर इस दिन के सम्मान का क्या कारण है ?