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अक़ीदा (आस्था)

आइटम्स की संख्या: 9

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    अल्लाह सर्वशक्तिमान के साथ शिर्क (बहुदेववाद) इस धरती पर अल्लाह की सबसे बड़ी अवज्ञा है। वास्तव में यह सबसे बड़ा अन्याय, सबसे बड़ा अत्याचार, सबसे बड़ा पाप, सबसे बड़ा भद्दा और सबसे बड़ा अपराध है। क्योंकि इसका संबंध सर्वसंसार के पालनहार सर्वशक्तिमान अल्लाह के साथ है। अनेकेश्वरवादियों का अधिकांश शिर्क अल्लाह की उपासना व पूजा कृत्यों में घटित हुआ है। जैसे- अल्लाह को छोड़कर दूसरों को पुकारना, विनती करना, या पूजा के कृत्यों में से किसी प्रकार को ग़ैरुल्लाह के लिए करना, जैसे कि अल्लाह के अलावा के लिए जानवर का बलिदान, मन्नत मानना, भय, आशा, प्रेम, तवक्कुल (भरोसा), इत्यादि। प्रस्तुत आडियो में इसी पर चर्चा किया गया है।

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    इस ऑडियो में इस बात का उल्लेख किया गया है किस तरह मानव समाज में ईश्दूतों के अवतरण की शुरूआत हुई और विकास करते हुए एक महान संदेष्टा के ईश्दूतत्व पर संपन्न हो गयी - और वह समस्त ईश्दूतों व संदेष्टाओं के नायक मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं। तथा ईश्दूतत्व के संक्षेप इतिहास का वर्णन करते हुए हमारे अंतिम संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ईश्दूतत्व, उनके अवतरण के समय धार्मिक व सामाजिक स्थितियों, उनके गुणों, पवित चरित्र, जीवन की घटनाओं, कठिन परिस्थियों, उनकी जाति के लोगों का आपके साथ दुर्व्यवहार और आपका उनके साथ सदव्यवहार का उल्लेख किया गया है। इसी तरह पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ईश्दूतत्व की सच्चाई, उसके प्रमाणों का चर्चा करते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि आप पर ईश्दूतत्व का समापन हो जाता है। अतएव, आप अब परलोक तक सर्वमानवजाति के लिए अल्लाह के ईश्दूत व संदेष्टा हैं और सबके लिए आपका अनुपालन करना अनिवार्य है।

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    इस ऑडयिों में उन बातों का उल्लेख किया गया है जिन पर हमारे संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें ईमान लाने का आदेश दिया है, और उनमें सर्व प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण अल्लाह पर ईमान लाना अर्थात ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ का इक़रार करना है। जिस पर इस्लाम की आधारशिला है, और जिसके द्वारा एक मुसलमान के बीच और एक काफिर, मुश्रिक और नास्तिक के बीच अंतर होता है। लेकिन केवल इस कलिमा का उच्चारण मात्र ही काफी नहीं है, बल्कि उसके अर्थ और भाव पर पूरा उतरना ज़रूरी है। इसी तरह ‘इलाह’ (पूज्य) का अर्थ और ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ की वास्तविकता का उल्लेख करते हुए, मानव जीवन में इस कलिमा के प्रभावों का उल्लेख किया गया है। अंत में उन अवशेष बातों का उल्लेख किया गया है जिन पर ईमान लाने का पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें आदेश दिया है, और वे : अल्लाह के फरिश्तों, उसकी पुस्तकों, उसके पैगंबरों, परलोक के दिन, और अच्छी व बुरी तक़्दीर (भाग्य) पर ईमान लाना, हैं।

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    अल्लाह सर्वशक्तिमान ने मनुष्य की रचना कर उन्हें नाना प्रकार के अनुग्रहों से सम्मानित किया है और साथ ही साथ कुछ आदेश और निषेध निर्धारित किए हैं जिनका पालन करना अनिवार्य है। परंतु अज्ञानता के कारण लोगों के अंदर उनके विचार, वचन और कर्म में अनेक ऐसी चीज़ें है प्रचलित हैं जो अल्लाह सर्वशक्तिमान के निकट महा पाप और जघन्य अपराध की श्रेणी में आती हैं। जबकि लोगों का हाल यह है कि वे उन्हें तुच्छ और हल्का समझते हैं, या कुछ लोग उन्हें धर्म का काम समझकर बड़ी आस्था के साथ करते हैं। प्रस्तुत व्याख्यान में उन्हीं हराम चीज़ों का खुलासा करते हुए, उनसे बचने का आह्वान किया गया है।

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    क़ुर्आन और हदीस से यह बात प्रमाणित है कि जिन्न, जादू, आसेब और नज़्रे-बद - की एक अटल हक़ीक़त है जिसका इनकार संभव नहीं। तथा यह बात भी वस्तुस्थिति कि आजकल बहुत से लोग जादूगरों, बाबाओं, रूहानी इलाज करने के दावेदारों ... इत्यादि के मायाजाल में फंसे हुये हैं, और खेद की बात यह है कि ये झूठे, धोखेबाज़, छली, फरेबी, मक्कार और दज्जाल, सीधे-साधे मासूम लोगों की जेबैं खाली करने के साथ-साथ उनके दीन व ईमान को भी नष्ट और भ्रष्ट कर रहे हैं। इसलिए आवश्यकता है कि लोगों के सामने इन सारी चीज़ों की हक़ीक़त को उजागर करते हुये इन लुटेरों का असली चेहरा उघारा जाये। इस आडियो में जिन्न, जादू, आसेब और नज़्रे-बद की हक़ीक़त, क़ुर्आन औऱ सहीह हदीस की रोशनी में उन से बचाव और उपचार के तरीक़े का उल्लेख किया गया है। विशेष रूप से जादू-मंत्र करने वालो की रहस्मय दुनिया का अच्छा खुलासा किया गया है। .

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    वर्तमान समय में कुछ मुसलमानों के बीच प्रचलित बिदअतों में से एक घृणित बिदअत : पंद्रह शाबान की रात का जश्न मनाना है, जिसे अवाम में शबे-बराअत के नाम से जाना जाता है और उसमें अनेक प्रकार की शरीअत के विरुद्ध कार्य किए जाते हैं, जिनके लिए ज़ईफ़ और मनगढ़त हदीसों का सहारा लिया जाता है। इस आडियो में पंद्रह शाबान की रात के बारे में वर्णित हदीसों का चर्चा करते हुए, उनकी हक़ीक़त से पर्दा उठाया गया है।

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    शबें शबे-बराअत की हक़ीक़तः कोई महीना ऐसा नहीं बीतता जिसमें बिदअती और अपनी इच्छाओं के पुजारी लोग धर्म के नाम पर कोई न कोई नवाचार निकालकर अंजाम न देते हों। उन्हीं में से शाबान महीने की पंद्रहवीं रात को विशेष उपासना करना, उसके दिन का रोज़ रखना, हलवा बनाना, और अन्य अवैद्ध कार्य करना व मान्चता रखना इत्यादि शामिल हैं। प्रस्तुत व्याख्यान में, क़ुरआन व हदीस के प्रकाश में इस विषय में वर्णित प्रमाणों का उल्लेख कर उनकी वास्तविकता को स्पष्ट किया गया है, तथा उसके बारे में उठाए जाने वाले संदेहों का उत्तर दिया गया है, और यह बताया गया है कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके सहाबा रज़ियल्लाह अन्हुम से इस बाबत कोई चीज़ प्रमाणित नहीं है।

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    वेलेंटासबसे बड़ा व सबसे महत्वपूर्ण काम अल्लाह सर्वशक्तिमाम का एकेश्वरवाद (तौहीद), और उसके साथ किसी को साझी न ठहराना है। यही इस्लाम धर्म की नींव और मौलिक सिद्धांत है। तथा यही सर्वप्रथम संदेष्टा नूह अलैहिस्सलाम से लेकर अंतिम संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तक सभी संदेष्टाओं का धर्म रहा है। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस एकेश्वरवाद को स्थापित करने के लिए भरपूर संघर्ष किया और इसके महत्व को स्पष्ट किया। जबकि दूसरी तरफ, इसके विपरीत अनेकेश्वरवाद व बहुदेववाद से सावधान किया, उसके सभी रूपों और भेदों पर चेतावनी दी और उसकी कुरूपता व दुष्टता को स्पष्ट किया।